Vedic Poojan

घमंड का फल | Ghamand ka fal

Ghamand ka flGhamand ka fl

घमंड का फल | Ghamand ka fl

गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी आदि अनेक नदियाँ इठलाती हुई चली आ रही थी। वे कल-कल ,छल-छल करती हुई सागर के जल में गिर रही थी। सागर बढ़े ध्यान से उनका आना देख रहा था। उसने देखा कि किसी नदी का जल सफ़ेद है, किसी का हरापन लिए हुए , किसी का नीलिमा की झलक लिए। उसने देखा की नदियों ले वेग से बड़े – बड़े पहाड़ी पत्थर बहे चले आ रहे हैं, कहीं विशालकाय वृक्ष तैर रहे हैं, तो कहीं घास, फूल, और पत्ते दिख रहे थे। सागर को नदियों के पानी में कभी भी दूब या सरकंडे दिखाई नहीं दिए।

गंगा (Ganga) जब पास आई तो सागर ने पूछा -‘गंगे, मैं देख रहा हूँ कि तुम सब नदियाँ बड़े-बड़े वृक्षों और पत्थरों को बड़ी सहजता से बहाती लाती हो। पर मैंने किसी के जल में सरकंडे बहते नहीं देखे। क्या बात हैं? वह तुम्हारे रस्ते में नहीं पड़ते या फिर तुम उनसे बहुत छोटा समझ कर बात नहीं करतीं ।

गंगा (Ganga) बोली -‘नहीं स्वामी! ऐसा नहीं हैं । सरकंडो का तो वन का वन हमारे किनारे उग आता हैं। हम उनसे कल-कल करके घंटों बातें भी करते हैं । सरकंडा छोटा है तो क्या, है बड़ा ही शालीन। उसे पता हैं की किस स्तिथि में क्या करना चाहिए? हमारी लहरें जब तट तो तोड़-तोड़ कर बहती हैं, जब हमारा जल सरकंडो तक पहुँच जाता हैं तो वे झुक जाते हैं । झुकते भी उसी तरफ हैं जिस तरफ हमारा बहाव होता हैं। सरकंडे की जड़े गहरी नहीं होती, उसका तना भी नहीं होता। पर फिर भी हम उसे बहा नहीं पाते। जैसे ही हमारा पानी उतरता हैं सरकंडा भी शान से खड़ा हो जाता हैं और हँसते -हँसते जीता हैं। तेज हवा चलती हैं तब भी वह यही करता हैं।

सागर ने पूछा- ‘और इतने बड़े-बड़े वृक्ष कैसे बह जाते हैं?’

गंगा (Ganga) बताने लगी – ‘वृक्ष बड़े घमंड (Ghamand) से तने खड़े रहते हैं। हमारा जल उनके तिनकों से टकराता हैं तो वे बड़े अभिमान से कहते हैं -अरी लहरों भागो यहाँ से, नहीं तो टकरा कर चूर-चूर हो जाओगी । उन्हें अपने बड़प्पन का बड़ा घमंड (Ghamand) हैं । उसी अहंकार में वह ढह जाते हैं। घमंडी सदैव ही दुःख पाता हैं।’

सागर ने सोचा – ‘वही उन्नति कर पाता हैं, व्यर्थ का घमंड (Ghamand) नहीं करता । चाहे वह रूप का हो, धन का हो या फिर शक्ति का हो, अभिमान सारे बुरे होते हैं।’