Vedic Poojan

योगक्षेमं वहाम्यहम् | Yogkshemam Vahamyhm

योगक्षेमं वहाम्यहम् | Yogkshemam Vahamyhmयोगक्षेमं वहाम्यहम् | Yogkshemam Vahamyhm

योगक्षेमं वहाम्यहम् | Yogkshemam Vahamyhm

अनन्याश्चन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् (Yogkshemam Vahamyhm)।।9.22।।

भावार्थ : जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्कामभाव से भजते हैं, उन नित्य-निरंतर मेरा चिंतन करने वाले मनुष्य का योगक्षेम (भगवत्‌स्वरूप की प्राप्ति का नाम ‘योग’ है और भगवत्‌प्राप्ति के निमित्त किए हुए साधन की रक्षा का नाम ‘क्षेम’ है) मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ॥9.22॥

श्री मद भागवत गीता में भगवान ने अपने भक्तों को यह आश्वासन दिया है कि उनके योगक्षेम की व्यवस्था मैं स्वयं करता हूँ ।

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की एक घटना है। तब वे जगत प्रसिद्द नहीं हुए थे और उनका जीवन भौतिक अभावों से गुजर रहा था। अमेरिका यात्रा से पूर्व उन्होंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया। एक बार वे रेलवे से यात्रा कर रहे थे। उन्हें बड़ी जोर से भूख-प्यास लग रही थी, उनके पास कुछ नहीं था। वे चुप-चाप बैठे थे। उनके सामने सीट पर एक सेठजी यात्रा कर रहे थे, उनके पास सब साधन थे, वे खाते-पीते यात्रा कर रहे थे। वे स्वामी जी की पूरी यात्रा में हंसी उड़ाते रहे की कैसा हट्टा-कट्टा सन्यासी है, निठल्ला है; कुछ काम नहीं करता, फ़ोकट का खाता है। एक हम है, खूब मेहनत करते है और ठाट से रहते हैं। स्वामीजी ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, चुप बैठे रहे।

गंतव्य स्टेशन आया, सेठजी और स्वामीजी एक साथ उतर गए और स्टेशन पर एक पेड़ के नीचे सीट पर बैठ गए ; किन्तु सेठजी का उपहास का क्रम नहीं टूटा। तभी एक हलवाई आया। उसने स्वामीजी को प्रणाम किया, साथ लाये आसान पर बैठाया और गरम गरम भोजन परोसने लगा तथा एक गिलास पानी रखा। विवेकानंद जी सकुचाकर कहा- ‘भाई ! तुम्हे ग़लतफ़हमी हुई है, तुम जिसके लिए कर रहे हो, वह मैं नहीं हूँ। मेरा यहाँ कोई परिचित नहीं, मैं तो एक सन्यासी हूँ।’

हलवाई बोला- ‘महाराज ! मैं तो अपनी दुकान पर सो रहा था। तभी मुझे नींद लग गयी। सपने में भगवान राम आये और कहा -‘तू यहाँ बैठा-बैठा ऊँघ रहा है, पर वहाँ स्टेशन पर मेरा भक्त भूखा – प्यासा बैठा है । जल्दी उठ, पूड़ी- सब्जी बना और ठंडा पानी ले जाना मत भूलना, किन्तु भ्रम समझ कर फिर सो गया। भगवान राम फिर सपने में आये और डांटकर कहा – ‘सुनता नहीं है, फिर सो गया, चल उठ, मैंने जैसा कहा है, वैसा कर। उन्होंने सपने में अपना साकार स्वरूप भी दिखाया। अब बस, मैं फटाफट उठा, पूड़ी-सब्जी बनायीं और दौड़ता आया हूँ। आप वही है, जैसा मैंने सपने मैं देखा था। सेठजी ने यह सब सुना, देखा और उन्हें अपने कृत्य पर ग्लानि हुई और स्वामी जी ने चरण पकड़ कर माफ़ी माँगी।