पितृ ऋण से निवृति के लिए पितृ पक्ष (Pitra Paksh) के सोलह दिनों में श्रद्धा पूर्वक तर्पण (पितरों को जल देना) करना चाहिए। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध (Pitra Paksh) होते हैं। मृत्यु तिथि को संकल्पित विधि से श्राद्ध (Shraddh) करना, जो ग्रास निकलना तथा उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ प्रसन्न होते है और उनकी प्रसन्नता ही पितृ ऋण से मुक्त करा देती है। श्राद्ध के लिए अपरा व्यापिनी तिथि ली जाती है।
मृतक के अग्नि संस्कार वाले दिन श्राद्ध नहीं किया जाता अपितु मृत्यु होने वाले दिन श्राद्ध करना चाहिए। शद्ध भोजन का समय दोपहर का होता है, जिसे ‘कुतुप बेला(Kutup Bela)’ कहते है। श्राद्ध को पूर्ण श्रद्धा भाव से यथा शक्ति करना चाहिए। ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध न करने से पितरों को तो दुःख होता ही है। स्वयं श्राद्ध न करने वाले को कष्टों का सामना करना पड़ता है।
पितृ पक्ष/ श्राद्ध पर्व की कथा (Story of Pitra Paksh / Shraddh Parva)
महाभारत (Maha Bharat) के दौरान, कर्ण (Karn) की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग (Heaven) में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे। उन्होंने देवता इंद्र(Indra) से पूछा किउन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया।
तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज (Purvaj) कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण (Tarpan) किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया।