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How to celebrate Sharad Poornima? | शरद पूर्णिमा कैसे मनाएँ?

Sharad PoornimaSharad Poornima

Sharad Poornima

शरद पूर्णिमा 2017 /  Sharad Poornima 2017 :

2017 में शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर को है । आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं । इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं । ज्योतिष की मान्यता है कि सम्पूर्ण वर्ष मैं आश्विन मास कि पूर्णिमा का चन्द्रमा ही षोडस कलाओं का होता है । कहते हैं कि इस दिन चन्द्रमा अमृत कि वर्षा करता है ।

शरद पूर्णिमा के दिन क्या करें? / What to do on Sharad Poornima :

शरद पूर्णिमा के दिन शाम को खीर, पूरी बनाकर भगवान को भोग लगाएँ । भोग लगाकर खीर को छत पर रख दें और रात को भगवान का भजन करें । चाँद कि रौशनी में सुई पिरोएँ तथा अगले दिन खीर का प्रसाद सभी को देना चाहिए ।
इस दिन प्रातःकाल आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करें । आसन पर विराजमान कर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवैद्य, ताम्बुल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजा करनी चाहिए ।
पूर्णिमा का व्रत करके कहानी सुननी चाहिए ।

शरद पूर्णिमा व्रत / Sharad Poornima vrat :

पूर्णमासी के व्रत का शुभारम्भ शरद पूर्णिमा से ही करें तथा कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ करना चाहिए ।

शरद पूर्णिमा की कथा सुनने कि विधि / Procedure of hearing Sharad Poornima Katha :

कथा सुनते समय एक लोटे में जल, गिलास में गेंहू, दोनों में रोली तथा चावल रखें । गेंहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें । फिर गेंहूं के गिलास पर हाथ फेर कर मिश्राणी (ब्रम्हाणी) के पाँव स्पर्श करके गिलास उसे दे दें । लोटे के जल का रात को अर्घ्य दें ।

शरद पूर्णिमा की कथा / Story of Sharad Poornima :

एक साहूकार के दो पुत्रियां थीं । दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं । परन्तु बड़ी पुत्री पूर्णिमा का पूरा व्रत रखती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी । परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री को संतान पैदा होते ही मर जाती थी । उसने पंडितों से इसका कारन पुछा तो उन्होंने उसे बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है । पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है ।
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक किया । उसके लड़का हुआ लेकिन शीघ्र ही मर गया । उसने लड़के को पीढ़े पर लिटा कर ऊपर से कपडा ढक दिया । फिर बड़ी बहिन को बुला कर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया । बड़ी बहिन जब पीढ़े पर बठैने लगी तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया । बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा । बड़ी बहिन बोली – “तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी । मेरे बठैने से ये मर जाता।” तब छोटी बहिन बोली , “ये तो पहले से ही मारा हुआ था । तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है । तेरे ही पुण्य से यह जीवित हुआ है ।” उसके बाद वह पूर्णिमा का पूरा व्रत करने लगी तथा उसकी कहानी सुनकर नगर के बहुत से लोग पूर्णिमा का व्रत करने लगे ।