नवरात्रि (Navratri) हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष में २ बार मनाई जाती है। चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। चैत्र नवरात्रि अप्रैल के महीने में आती है और शारदीय नवरात्रि सितम्बर या अक्टूबर में।शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।
इस वर्ष 2017 में नवरात्रि 21 से 29 सितंबर तक है। दुर्गा पूजा का आरंभ घट (कलश) स्थापना से शुरू हो जाता है। हिन्दू धर्म ग्रन्थ एवं पुराणों के अनुसार नवरात्रि माता दुर्गा (Durga) के सभी अवतारों की आराधना का सबसे उपयुक्त एवं फलवर्द्धक समय होता है।मार्कण्डेय पुराण में शक्ति(दुर्गा) के नौ रुपों की चर्चा की गई है।
घट स्थापना मुहूर्त = 21 सितंबर 2017 को 06:18 से 08:10 तक।
दुर्गा विसर्जन मुहूर्त = 30 सितंबर 2017 को 06:21 से 08:43 तक।
नौ देवियों की पूजा (Navdurga Puja in Navratri)
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः । उक्तान्येतानि नामानि,ब्रह्मणैव महात्मना ।।
पहला नवरात्र | प्रथमा | 21 सितंबर 2017 | कलश(घट) स्थापना, शैलपुत्री पूजा | ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥ |
दूसरा नवरात्र | द्वितीया | 22 सितंबर 2017 | ब्रह्मचारिणी पूजा | ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥ |
तीसरा नवरात्र | तृतीया | 23 सितंबर 2017 | चंद्रघंटा पूजा | ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥ |
चौथा नवरात्र | चतुर्थी | 24 सितंबर 2017 | कूष्माण्डा पूजा | ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥ |
पांचवां नवरात्र | पंचमी | 25 सितंबर 2017 | स्कन्दमाता पूजा | ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥ |
छठा नवरात्र | षष्ठी | 26 सितंबर 2017 | कात्यायनी पूजा | ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥ |
सातवां नवरात्र | सप्तमी | 27 सितंबर 2017 | कालरात्रि पूजा | ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥ |
आठवां नवरात्र | अष्टमी | 28 सितंबर 2017 | महागौरी पूजा | ॐ देवी महागौर्यै नमः॥ |
नौवां नवरात्र | नवमी | 29 सितंबर 2017 | सिद्धिदात्री पूजा, नवमी हवन,कन्या पूजन | ॐ देवी सिद्धिदात्रयै नमः॥ |
दशहरा | दशमी | 30 सितंबर 2017 | नवरात्रि पारण, दुर्गा विसर्जन, विजयदशमी |
कलश स्थापना विधि (Kalash Sthapana Vidhi)
धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। हिन्दू धर्म में धारणा है कि कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृ शक्तियां निवास करती हैं।
- सबसे पहले पूजा स्थान को साफ कर उसके ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछा लें।
- थोड़े चावल कपड़े पर रखकर गणेश जी का स्मरण करें।
- तत्पश्चात मिट्टी के पात्र में जौ बोना चाहिए। जल से भरा हुआ कलश पात्र के उपर स्थापित करना चाहिए ।
- कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांधकर उसके चारो तरफ कलश पर रोली से स्वस्तिक या ॐ बना ले ।
- कलश के अंदर साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल, सिक्का डालें ।
- उसके ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए। उसके ऊपर नारियल, जिस पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें।
- नारियल को कलश पर रखें। नारियल की स्थापना इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे।
- कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें कि नौ दिनों के लिए वह इस में विराजमान हो ।
- दीपक व धूपबत्ती जलाकर कलश का पूजन करें। कलश को फल,फूल,माला, मिठाई, इत्र समर्पित करें।
कन्या पूजन (कुमारी पूजा ) विधि (Navratri Kanya Poojan Vidhi )
नवरात्र के अन्तिम दिन कुवारी कन्याओं को सादर पुर्वक घर बुलाकर भोजन अवश्य कराए। नव कन्याओं को नव दुर्गा रूप मान कर पूजन करें। घर में प्रवेश करते ही कन्याओं के पाँव धोएं और उचित आसन पर बिठाए। हाथ में मौली बांधे और माथे पर बिंदी लगाएं। उनकी थाली में हलवा-पूरी और चने परोसे। अब कन्याओं को उचित उपहार तथा कुछ राशि भी भेंट में दे और चरण छुएं। उनके जाने के बाद स्वयं प्रसाद खाले।
नवरात्रि पूजा विसर्जन विधि (Navratri Visarjan Vidhi)
- नवरात्रि (Navratri) के अंतिम दिन एक पुष्प एवं चावल के कुछ दाने हथेली में लें और संकल्प लें|
- कलश में स्थापित नारियल और चढ़ावे के तौर पर सभी फल, मिष्ठान्न आदि को स्वयं भी ग्रहण करें व परिजनों को भी दें|
- घट के पवित्र जल का पूरे घर में छिडकाव करें और फिर सम्पूर्ण परिवार इसे प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें|
- घट में रखें सिक्कों को अपने गुल्लक में रख सकते हैं, बरकत होती है|
- माता की चौकी से सिंहासन को पुनः अपने घर के मंदिर में उनके स्थान पर ही रख दें| श्री गणेश की प्रतिमा को भी पुनः घर के मंदिर में उनके स्थान पर रख दे|
- श्रृंगार सामग्री में से साड़ी और जेवरात आदि को घर की महिलाएं प्रयोग कर सकती हैं|
- चौकी और घट के ढक्कन पर रखें चावल एकत्रित कर पक्षियों को दें|
- माँ दुर्गे की प्रतिमा अथवा तस्वीर, घट में बोयें गए जौ एवं पूजा सामग्री, सब को प्रणाम करें और समुद्र, नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें|
- विसर्जन के पश्चात एक नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपडें को किसी ब्राह्मण को दान करें|
नवरात्रि कथाएं (Navratri Stories)
- लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था की गई। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब रामजी को स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और श्रीराम जैसे ही बाण से अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। श्रीराम ने युद्ध में विजय हासिल की। अधर्म पर धर्म की इस विजय के कारण लोगों ने नवरात्रि का पूजन शुरू किया था ।
- इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार महिषासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए नौ दिनों तक माँ दुर्गा और महिषासुर का महासंग्राम चला, अंततः महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुरमर्दिनी (Mahishasur mardini) कहलाईं । तभी से हर्षो -उल्लाश के साथ नवरात्रि पूजा का शुभारम्भ हुआ।