आषाढ (Ashadh) महीने के अंतिम दिन ‘पूर्णिमा’ को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का त्योहार के नाम से पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष 2017 को यह पर्व 9 जुलाई यानि रविवार को है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
हिन्दू धर्म में गुरु का दर्जा भगवान से भी ऊपर माना जाता है। महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु माना जाता है कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को वेद व्यास का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के नाम से जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि, महर्षि वेद व्यास (Maharshi Ved Vyas) ने सभी 4 वेदों को लिखा था जिन्हें भगवान ब्रह्मा द्वारा पठित किया गया था। उन्होंने 18 पुराणों को भी लिखा था। इसके अलावा महर्षि वेद व्यास (Maharshi Ved Vyas) महाकाव्य महाभारत ( Maha Bharat) के रचनाकार है जो कि गणेश जी द्वारा लिखा गया है।
जैसा कि यह दिन गुरुओं के प्रति समर्पित है। लोग अपने गुरुओं से प्रार्थना करते हैं और प्रदान किए गए ज्ञान के लिए धन्यवाद करते हैं। गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) दिन अपने शिक्षक की पूजा करने और उनके प्रति कृतज्ञता दिखाने के बारे में है।
कबीर दास जी (Kabir Das) कहते है –
गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि़ गढि़ काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
संसारी जीवों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए संत शिरोमणि कबीर दास जी (Kabir Das) कहते हैं- ‘गुरू कुम्हार है शिष्य मिट्टी के कच्चे घड़े के समान है। जिस तरह घड़े को सुन्दर बनाने के लिए अन्दर हाथ डालकर बाहर से थाप मारते हैं ठीक उसी प्रकार शिष्य को कठोर अनुशासन में रखकर अन्तर से प्रेम भावना रखते हुए शिष्य की बुराइयों को दूर करके संसार में सम्माननीय बनाता है।’
मनु स्मृति (Manu Smrati) के अनुसार, सिर्फ वेदों की शिक्षा देने वाला ही गुरु नहीं होता। हर वो व्यक्ति जो हमारा सही मार्गदर्शन करे, उसे भी गुरु के समान ही समझना चाहिए।
यहां तक कि माता-पिता भी गुरु हैं क्योंकि वे बच्चे के लिए सबसे अच्छा प्रचारक हैं। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि गुरु वह है जो भगवान और मानव आत्मा के बीच संबंध के रूप में कार्य करता है। और जीवन में गुरु होने के कारण वस्तुएं होनी चाहिए। गुरु वह है जो व्यक्ति को शांति और ज्ञान के रास्ते में और आखिर में भगवान को मार्गदर्शन देता है।
हमेशा उनसे सलाह लेनी चाहिए, जो हमे ज्ञान देता है उसका आदर करना धर्म माना जाता है। यही नहीं उनकी सेवा करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ना चाहिए। जो व्यक्ति धर्म के कार्यो में हमेशा लगा रहता है उसे भी गुरु के बराबर का दर्जा देने चाहिए। अगर धर्मात्मा व्यक्ति कभी कोई सलाह दे तो उसे भी गुरु के समान समझकर उसका पालन करना चाहिए। परोपकार करने वाला निस्वार्थ भाव से अपना काम करता है, ये बिना अपने मतलब से सलाह देते हैं और सही रास्ता दिखाते हैं। इसीलिए ऐसे व्यक्ति को हमेशा गुरु मानना चाहिए।