जो डर गया, वो मर गया | Jo dar gaya, Wo mar gaya

जो डर गया, वो मर गया ( Jo dar gaya, Wo mar gaya)

यह बात बिल्कुल सही है कि विजेता कभी भी पीछे नहीं हटता और कभी भी तनावग्रस्त नहीं हो सकता।

इस सम्बन्ध में एक रोचक प्रसंग है- दो लड़के गांव की सड़क पर घूम रहे थे। उन्होंने दूध के दो डिब्बे देखे, जो शहर में दूध बेचने को जाने थे। लड़कों ने शरारत में दोनों डिब्बों में एक-एक मेढ़क डाल दिया। विक्रेता (Seller) ने उन डिब्बों को उठाया और दूध बेचने के लिए शहर की तरफ निकल पड़ा।

पहले डिब्बे में बैठा मेढ़क सोचने लगा – ‘ मैं डिब्बे के ढक्क्न को नहीं उठा सकता, क्योंकि यह बहुत भारी है। मैंने इससे पहले कभी दूध का स्नान नहीं किया और में डिब्बे की ताली में छेड़ करके बहार भी नहीं नकल सकता, इसलिए कोशिश करने से भी लाभ नहीं है और निराश होकर उसने कोशिश छोड़ दी। अंततः जब ढक्कन खोला गया, तो उसमे एक बड़ा मरा हुआ मेढ़क मिला।

यही स्थिति दूसरे मेढ़क के साथ भी थी। मेढ़क विचार करने लगा- में इस डिब्बे के ढक्कन नहीं उठा सकता क्योंकि यह बहुत भारी है और कसकर बंद कर दिया गया है। मेरे पास छेद करने के लिए भी कुछ नहीं है। जिससे की मैं अपने आप को बचा सकूँ, परन्तु मेने जल देवता से एक बात सीखी है। कि तरल पदार्थों में तैरना चाहिए। इसलिए वह तैरता गया, तैरता गया और इस इस तरह मथने से मक्खन का ढेला बन गया और उस पर बैठ गया।

जब डिब्बे का ढक्कन उठाया गया तो वह कूद कर बाहर आ गया है। तात्पर्य यह है कि जीतने वाले कभी कोशिश करना नहीं छोड़ते है और कोशिश करने वाले कभी निराश और तनावग्रस्त नहीं हो सकते हैं।

“जो भी परिस्थितियाँ मिलें, काँटे चुभें कलियाँ खिले,
हारे नहीं इंसान, है संदेश जीवन का यही ।”

मनुष्य का जीवन चक्र अनेक प्रकार की विविधताओं से भरा होता है जिसमें सुख- दु:खु, आशा-निराशा तथा जय-पराजय के अनेक रंग समाहित होते हैं । वास्तविक रूप में मनुष्य की हार और जीत उसके मनोयोग पर आधारित होती है । मन के योग से उसकी विजय अवश्यंभावी है परंतु मन के हारने पर निश्चय ही उसे पराजय का मुँह देखना पड़ता है ।

परंतु दूसरी ओर यदि हम आशावादी हैं और हमारे मन में कुछ पाने व जानने की तीव्र इच्छा हो तथा हम सदैव भविष्य की ओर देखते हैं तो हम इन सकारात्मक विचारों के अनुरूप प्रगति की ओर बढ़ते चले जाते हैं ।

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