एक बार एक राजा के मन में तीन प्रश्न (Teen Prashn) आये। १. किसी काम के करने का महत्वपूर्ण समय कौन सा है? २. महत्त्व का काम कौन सा है? ३. सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है?
राजा ने यह प्रश्न (Teen Prashn) अपने मंत्रियों व विद्वानों से पूछा ; किन्तु उन्हें किसी के जबाब से संतोष नहीं हुआ। वे अंत में नगर के बाहर वन में कुटिया बनाकर रहने वाले एक संत के पास गए। संत उस समय फावड़ा लेकर फूलों की क्यारी की मिटटी खोद रहे थे। राजा ने साधु को प्रणाम करके अपने तीन प्रश्न (Teen Prashn) उन्हें सुनाये; परन्तु साधु ने कोई उत्तर नहीं दिया। वे चुपचाप अपने काम में लगे रहे। राजा ने सोचा साधु वृद्ध है, थक गए है, वे स्वस्थ चित्त से बैठें तो मेरे प्रश्नों का उत्तर दे सकेंगे। यह विचार करके उन्होंने साधु के हाथ से फावड़ा ले लिया और स्वयं मिटटी खोदने लगे। जब साधु फावड़ा देकर अलग बैठ गए, तब तब राजा ने अपने प्रश्नों का उत्तर देने की प्रार्थना की। साधु बाले -‘देखो, उधर दूर से कोई व्यक्ति दौड़ता आ रहा है। पहले हम लोग देखें कि वह क्या चाहता है।’
सचमुच एक मनुष्य दौड़ता आ रहा था। वह अत्यंत भयभीत लगता था। उसके शरीर पर शस्त्रों के घाव थे और उनसे रक्त बह रहा था। समीप पहुँचने से पहले ही वह भूमि पर गिर गया और बेहोश हो गया। साधु के साथ राजा भी उसके पास दौड़ कर उसके पास आये। जल लाकर उन्होंने उसके घाव धोये। अपनी पगड़ी फाड़कर राजा ने घावों पर पट्टी बाँधी। इतने में ही व्यक्ति कि बेहोशी दूर हुई, राजा को अपनी सेवा में लगे देखकर उसने उनके पैर पकड़ लिए और रोकर बोला- ‘मेरा अपराध क्षमा करें।’
राजा ने आश्चर्य पूर्वक कहा -‘ भाई ! मैं तो तुम्हे पहचानता तक नहीं, फिर तुम किस बात के लिए क्षमा मांग रहे हो?’
उस व्यक्ति ने बताया- ‘आपने मुझे कभी देखा नहीं है; किन्तु एक युद्ध में मेरा भाई आपके हाथों मारा गया है। मैं तभी से आपको मारकर भाई का बदला लेने का अवसर ढूंढ रहा था। आज आपको वन की ओर आता देखकर मैं आपको छिपकर आपको मार डालने आया था, परन्तु आपके सैनिकों ने मुझे देख लिया। वे मुझ पर एक साथ टूट पड़े। उनसे प्राण बचाकर मैं यहाँ आया। महाराज! आज मुझे पता लगा कि आप कितने दयालु है। आपने अपनी पगड़ी फाड़कर मुझ जैसे शत्रु की सेवा की। आप मेरे अपराध क्षमा करें। अब मैं आपका आजीवन सेवक बना रहूँगा।
उस व्यक्ति का नगर में भेजने का प्रबंध करके राजा ने साधु से पुनः तीन प्रश्नों (Teen Prashn) का उत्तर मांगा तो साधु बोले -‘राजन! आपको उत्तर तो मिल गया। सबसे महत्वपूर्ण समय वह था, जब आप मेरी फूलों की क्यारी खोद रहे थे; क्योंकि यदि आप उस समय क्यारी न खोद कर लौट जाते तो यह व्यक्ति आप पर हमला कर देता। सबसे महत्वपूर्ण काम था इस व्यक्ति की सेवा करना ; क्योंकि यदि आप सेवा करके इसका जीवन न बचा लेते तो यह शत्रुता चित्त मंय लेकर मरता और पता नहीं इसकी और आपकी शत्रुता कितने जन्मों तक चलती रहती और सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति मैं हूँ, जिसके द्वारा शांति पाकर तुम लौटोगे।’
राजा ने मस्तक झुकाया। साधु बोले – ‘ठीक न समझे हो तो सबसे महत्वपूर्ण समय ‘वर्तमान समय’ है , उसका उत्तम से उत्तम उपयोग करो। सबसे महत्वपूर्ण वो काम है, जो वर्तमान में तुम्हारे सामने है। उसे पूरी सावधानी से संपन्न करो। सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वो है, जो वर्तमान में तुम्हारे सन्मुख है। उसके साथ सम्यक रीति से व्यवहार करो।’
“स्मरण रहे, केवल एक ही समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और वह समय यही है, इस क्षण में है। इसी क्षण की सत्ता है, इसी का प्रभुत्व है। सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वही है जो आपके समीप है, आपके समक्ष है, क्योंकि हम नहीं जानते कि अगले क्षण हम किसी अन्य व्यक्ति से व्यवहार करने के लिए जीवित रहेंगे भी या नहीं। और सबसे आवश्यक कार्य यह है कि आपके समीप आपके समक्ष उपस्थित व्यक्ति के जीवन को सुख-शांतिपूर्ण करने के प्रयास किये जाएँ क्योंकि यही मानवजीवन का उद्देश्य है।”