॥ श्री ॥
श्री गणेशाय नमः
ॐ गंगणपते नमः
ॐ एक दन्ताय विध्महै वक्र तुण्डाय धीमहीतन्नो दंती प्रचोदयात
ध्यानम
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजत गिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्यलाङ्ग परशु मृगवराभी तिहस्तं प्रसन्नम पद्मासीनं समन्ता त्स्तुतम मरगणं व्याघ्रकृति वसानं विश्वाघं विश्वबीजं निखिल भयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम ।
ॐ
सर्व व्याधि निवारण के लिए –
ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहीमां शरणागतम
जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीडिंत कर्म बन्धनः
॥ महामृत्युंजय जप ॥
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यंबकम स्यजा महे सुगंधिभपुष्टिवर्ध्दनम् ।
उर्व्वारुकमिवबंधननंमृत्यो मर्मुक्षीयमामृतात ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
ॐ नमः शिवाय
॥ शिव स्तुति ॥
सेबहुँ शिव चरण सरोज रेणु । कल्याण अखिलप्रद कामधेनु ।
कर्पूर गौरं करुणा उदारं । संसार सारं भुजगेन्द्र हारं ॥
सुख जन्मभूमि महिमा अपार । निर्गुण गुणनायक निराकार ।
उपकारी को पर हर समान । सुर असुर जरतकृत गरल पान ॥
बहु कल्प उपायन करि अनेक । बिनु शम्भु कृपा नहि भवविवेक ।
विज्ञान भवन गिरिसुता रमन । कह तुलसीदास मम् त्रत समान ॥
॥ शिवाष्टक ॥
जय शिव शंकर जय गंगाधर करुणाकर करतार हरे ।
जय कैलाशी जय अविनाशी सुखराशि सुख सार हरे ॥
जय शशिशेखर जय डमरूधर जय जय प्रेमागार हरे ।
जय त्रिपुरारी जय मदहारी अमित अन्नंत अपार हरे ॥
निर्गुण जय जय सगुन अनामय निराकार साकार हरे ।
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे ॥
जय रामेश्वर जय नागेश्वर वैजनाथ केदार हरे ।
मल्लिकार्जुन सोमनाथ जय महांकाल ओंकार हरे ॥
त्रयंबकेश्वर जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे ।
काशी पति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे ॥
नीलकंठ जय भूतनाथ जय मृत्युंजय अविकार हरे ।
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे ॥
जय महेश जय जय भवेश जय आदि देव महादेव विभो ।
किस मुख से है गुणातीत प्रभु तब अपार गन वर्णन हो ॥
जय भाव कारक तारक हारक पातक दारक शिव शम्भो ।
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर प्रेम सुधा धर की जय हो ॥
पार लगा दो भव सागर से बनकर करुणाधार हरे ।
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे ॥
जय मन भावन जय अति पावन शोक नशावन शिव शम्भो ।
विपत विदारन अधम उधारन सत्य सनातन शिव शम्भो ॥
सहज वचन हर जलज नयन वर धवल वरन तन शिव शम्भो ।
मदन करन कर पाप हरन हर चरन मनन धन शिव शम्भो ॥
विवसन विश्व रूप प्रलयंकर जग के मूलाधार हरे ।
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे ॥
भोलानाथ कृपालु दयामय औढर दानी, शिव योगी ।
निमिष मात्र में देते हैं नवनिधि मनमानी शिव योगी ॥
सरल ह्रदय अति करुणा सागर अकथ कहानी शिव योगी ।
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर बने मसानी शिव योगी ॥
स्वयं अकिंचन जान मन रंजन पर शिव परम उदार हरे ।
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे ॥
आशुतोष इस मोह मयी निंद्रा से मुझे जगा देना ।
विषम वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना ॥
एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद संचार हरे ।
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे ॥
दानी हो तो भिक्षा में अपनी अनपायिनी भक्ति प्रभो ।
शक्तिमान हो दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो ॥
त्यागी हो दो इस असार संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभु ।
परम पिता हो दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभु ॥
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुण पुकार हरे ।
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे ॥
तुम बिन बेकल हूँ प्राणेश्वर आ जाओ भगवन्त हरे ।
चरण शरण की बांह गहो हे उमारमण प्रिय कंत हरे ॥
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे ।
पार्वती पति हर हर शम्भो पाहि पाहि दातार हरे ॥
धन धन भोलानाथ बाट दिया तीन भवन एक भर में ।
ऐसे दीन दयाल मेरे दाता भरो खजाना पल भर में ॥
ब्रह्मा को दिया वेद ज्ञान और बना दिया वेद का अधिकारी ।
विष्णु को दिया चक्र सुर्दशन लक्ष्मी सी सुन्दर नारी ॥
इंद्र को दीनी काम धेनु और ऐरावत की असवारी ।
कुबेर को सारी वसुधा का बना दिया शिव भंडारी ॥
आप रखौ नहि तन पर वस्त्र मस्त रहो वाधम्बर में ।
ऐसे दीन दयाल मेरे दाता भरो खजाना पल भर में ॥
नारद को वीणा दे दीन्हा गन्धर्व को आप राग दिया ।
ब्रम्ह ज्ञान दे दिया उसी को जिसने शिव का ध्यान किया ॥
मन मोहन को दीन्ही मोहनी मोर मुकुट बकसीस दिया ।
आप बसे काशीजी में जाकर भक्तों को विश्वास दिया ॥
रावण को गढ़ लंका दीन्ही बीस भुजा दश शीश दिया ।
श्री रामचंद्रजी को धनुष बाण और अपने को जगदीश किया ॥
अमृत तो देवता को दीन्हा आप हलाहल पान किया ।
भगीरथ को गंगा दीन्ही कूल भर के स्नान किया ॥
ब्राह्मण को दिया कर्म कांड और ख्यासी को त्याग दिया ।
कहे रामलालजी खटोड़, इंदौर वाला सबको उत्तम भाग दिया ॥
आप रखो नहि पात्र पास में भांग पियो नित खप्पर में ।
ऐसे दीन दयाल मेरे दाता भरो खजाना पल भर में ॥