मनुष्य जीवन का रहस्य
“यह जीवन की कड़ी टूट-टूट कर जुड़ती है,
बार-बार टूटती है, बार-बार जुड़ती है,
जीवन के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जीवन
यह क्रम लगातार चलता है।
संसार में सदा के लिये कोई नहीं आता
कौन,कब,कहाँ बिझुड जाये कहा भी नही जा सकता है”।
-श्री सुधांशु जी महाराज
एक बार एक शिष्य ने टॉलस्टाय से पूछा -‘जीवन क्या है ‘?
टॉलस्टाय ने जबाब दिया – एक बार एक व्यक्ति जंगल के मार्ग से होकर जा रहा था। तभी सामने से एक हाथी उसकी ओर लपका। अपने प्राण बचने के लिए वो तत्काल एक कुए में कूद गया। कुए में एक वट वृक्ष था। उसकी एक शाखा को पकड़ कर वह झूल गया। उसने नीचे देखा साक्षात् मौत खड़ी है। एक मगरमच्छ मुँह खोले बैठा था। भय कम्पित वह मृत्यु का साक्षात् दर्शन कर रहा था। उसने ऊपर देखा कि एक छत्ते से मधु बूंद-बूंद करके टपक रहा था। वह सब कुछ भूल मधु का स्वाद लेने में तल्लीन हो गया ।
लेकिन यह क्या ? जिस पेड़ से वह लटका था ,उसकी जड़ को दो चूहे कुतर रहे थे ।एक उजाला था दूसरा काला । शिष्य ने पूछा- इसका क्या अर्थ है ?
टॉलस्टाय बोले- ‘तू नहीं समझा, वह हाथी काल था ,मगर मृत्यु ,मधु जीवन रस था और दो चूहे दिन – रात। बस यही तो जीवन है’ । जिज्ञासु शिष्य को जबाब से संतुष्टि हुई ।