श्रीमद रामेश्वरम(Shrimd Rameshwaram)/श्रीरामेश्वरम हिंदुओं का एक प्रसिद्द तीर्थ स्थल है। इसे चार धाम में से एक स्थल माना गया है। इसके अलावा यहाँ स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। रामेश्वरम तमिलनाडु में रामनाथपुरम जिले में स्थित है।
समुद्रदेव के निर्देशानुसार सेतु निर्माण का कार्य प्रारम्भ हो गया। सौ योजन सेतु के निर्माण के लिए कपि सुभट दूर -दूर से पर्वतों की शिलायें उखाड़-उखाड़ कर लाने लगे। वानरवीर नल और नील के साथ अन्य वानरवीर निर्माण कार्य में संलग्न हो गये। विश्व के नेत्रों को चकित कर देने वाला एक अकल्पनीय स्वप्न मात्र आठ दिन में धरती पर अवतरित हो गया। सबकी कठोर मेहनत से कार्य सुगमता से सम्पादित हो गया।
सेतु का निरीक्षण कर राघवेंद्र ने महर्षि अगस्त्य से परामर्श कर वह भगवान शंकर के श्रीविग्रह की स्थापना का निश्चय व्यक्त किया। राघवेंद्र ने समुद्र-तट की बालू को एकत्रित कर, उन्हें प्राण प्रतिष्ठित कर दिया। वैदिक विधि-विधान से संस्थापना, पूजा-अर्चन के उपरांत श्रीराम बोले कि ‘यह मुझ राम के परमाराध्य भगवान शंकर का ज्योतिर्लिंग, भविष्य में राम के ईश्वर ‘श्रीरामेश्वरम ‘ के नाम से प्रसिद्द होगा।’ तभी आकाश मंडल से एक मधुर स्वर गूंजने लगा, ‘यह लिंग विग्रह उस शंकर का है, जिसके ध्येय नीलाम्बुज-श्यामल सुस्मित स्वयं श्रीराम है। अतः शिव के ईश्वर’ श्रीराम द्वारा प्रस्थापित इस लिंग विग्रह की संज्ञा श्रीरामेश्वरम ही होगी।’ वे कहने लगे कि इन्हे श्रीरामेश्वरम तो निर्विवादरूपेण कहेंगे, किन्तु किसकी व्याख्या के अनुसार, किनकी परिभाषा के अनुसार?
इस मृदुल-मंजुल ऊहापोह का समापन करने वाली महर्षि अगस्त्य की मनोहर वाणी गूंज उठी कि ‘जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम एवं गंगाधर शशांकमौलि भगवान शंकर का मंगलमय समागम हो रहा है, वे श्रीमद रामेश्वरम(Shrimd Rameshwaram) की उपाधि से विभूषित होकर, इसी नाम से कल्प-कल्प में सम्पूजित रहेंगे । यह महाकाल का पावन तीर्थ, तीर्थस्थानों की प्रथम पंक्ति में सदैव सर्वमान्य रहेगा। भगवती गंगा(Ganga) के जल से प्रहर्षित होने वाले ये देवभूमि भारतवर्ष की सांस्कृतिक एकता-अखंडता का उद्घोष करते हुए आशुतोष युग-युग में जन-जन का कल्याण करेंगे। लौकिक-पारलौकिक ऐश्वर्य वैभव प्रदान करेंगे। इसके अतिरिक्त कपिवर नल के नेतृत्व में निर्मित इस सेतु के स्वामी भी ये ही त्रिलोचन पार्वतीश्वर हैं। अतः वे सेतुपति श्रीमद रामेश्वरम(Shrimd Rameshwaram) कहलायेंगे।’
‘नहीं-नहीं, ‘सेतुपति’ शब्द भुजंगभूषण को अहंकार की दलदल में डाल देगा। अतः मैं इस सेतु से अवश्यमेव संयुक्त रहूँगा,किन्तु पति या स्वामी बनकर नहीं, बंधू बनकर। अतः मुझे ‘सेतुबन्धु श्रीमद रामेश्वरम(Shrimd Rameshwaram)’ ही कहा जाय।’
किसमें ऐसा साहस था की वह के इन आदेशात्मक शब्दों का विरोध क्या उस पर टीका- टिप्पणी भी करता।
‘सेतुबन्धु श्रीमद्रामेश्वरम(Shrimd Rameshwaram) की जय-जय’ से दशों दिशाएँ गूंज उठीं।