रक्षा बंधन | Raksha Bandhan

रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार बहन-भाई के प्यार का प्रतीक है। एक ओर जहां भाई-बहन के प्रति अपने दायित्व निभाने का वचन बहन को देता है, तो दूसरी ओर बहन भी भाई की लंबी उम्र के लिये उपवास रखती है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी (Rakhi) बहन बांधती है राखी सिर्फ रेशम की डोर या धागा मात्र नहीं होती बल्कि वह बहन-भाई के अटूट और पवित्र प्रेम का बंधन और रक्षा पोटली जैसी शक्ति भी उस साधारण से नजर आने वाले धागे में निहित होती है। यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और गहरा करने वाला पर्व है।

श्रावण (सावन) मास की पूर्णिमा को यह राखी का पर्व मनाया जाता है। सावन मास  में रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) के अलावा अन्य त्यौहार हरियाली तीज (Hariyali Teej)सावन सोमवार (Sawan Somvar), नाग पंचमी (Nag Panchami) भी मनाये जाते हैं। वर्ष 2017 में, यह त्यौहार 7 अगस्त को मनाया जाएगा।

शास्त्रों के अनुसार सूतक तथा भद्राकाल में राखी नहीं बांधी जाती। ज्योतिषित गणना के अनुसार रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) पर सोमवार की दोपहर 1 बजकर 40 मिनट पर सूतक लग जाएगा और भद्रा काल सुबह 11 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। जिसके चलते सुबह 11 बजकर 30 से दोपहर के 1 बजकर 39 मिनट के बीच रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के लिए सही समय माना गया है।

रक्षाबंधन पूजन विधि (Pujan Vidhi of Raksha Bandhan)

  1. प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं।
  2. टीका करवाने के लिये लड़के और पुरुष तैयार होकर मंदिर या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं।
  3. पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है।
  4. इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है।
  5. फिर दाहिनी कलाई पर राखी (Rakhi) बाँधी जाती है और पैसों से न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है।
  6. भारत के अनेक प्रान्तों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ लगाने की प्रथा भी है।
  7. भाई बहन को उपहार या धन देता है।

रक्षाबंधन की पौराणिक कथाऐं (Festival stories  of Raksha Bandhan )

रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। यदि रक्षाबंधन की शुरुआत के बारे में देखें तो यह भाई-बहन का त्यौहार नहीं बल्कि विजय प्राप्ति के किया गया रक्षा का बंधन है।

कथा 1: देवराज इंद्र और शचि (Devraj Indra and Shachi)

भविष्य पुराण के अनुसार जो कथा मिलती है वह इस प्रकार है। देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ा हुआ था। लगातार 12 साल तक युद्ध के पश्चात असुरों ने देवराज इंद्र के सिंहासन सहित तीनों लोकों को जीत लिया। इसके बाद इंद्र देवगुरु बृहस्पति के पास के गये और सलाह मांगी। बृहस्पति ने इन्हें मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन गुरू बृहस्पति ने रक्षा विधान संस्कार आरंभ किया। इस रक्षा विधान के दौरान मंत्रोच्चारण से रक्षा पोटली को मजबूत किया गया। पूजा के बाद इस पोटली को देवराज इंद्र की पत्नी शचि (इंद्राणी) ने देवराज इंद्र के दाहिने हाथ पर बांधा। इसकी ताकत से ही देवराज इंद्र असुरों को हराने और अपना खोया राज्य वापस पाने में कामयाब हुए।

कथा 2: श्रीकृष्ण और द्रौपदी (Shri Krishna and Draupadi )

रक्षा बंधन | Raksha Bandhan

महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित श्रीकृष्ण और द्रौपदी का एक वृत्तान्त भी मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। श्रीकृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई।

कथा 3: रानी कर्मावती व मुगल बादशाह हुमायूँ (Rani Karmavati and Mugal Emperor Humayun)

रक्षा बंधन | Raksha Bandhan

राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।

कथा 4: पुरूवास व सिकन्दर (Puruvas and Sikandar)

एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया। सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बाँध कर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया । पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया। ऐतिहासिक युग में भी सिकंदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।

कथा 5: लक्ष्मी जी व दानवेन्द्र राजा बलि (Laxmi ji and Danvendra King Bali)

सौ यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली। बलि के गु्रु शुक्रदेव ने ब्राह्मण रुप धारण किए हुए विष्णु को पहचान लिया और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया किंतु दानवेन्द्र राजा बलि अपने वचन से न फिरे और तीन पग भूमि दान कर दी। वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहाँ रखें? बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। यदि वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही वह रसातल लोक में पहुँच गया। जब बलि रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। भगवान के रसातल निवास से परेशान लक्ष्मी जी ने सोचा कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन(Raksha Bandhan) बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी यथा रक्षा-बंधन (Raksha Bandhan) मनाया जाने लगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.