श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami)
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) का पर्व भाद्रपद (भादों) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता हैं। भगवान कृष्ण का जन्म असुरों का नाश करने के लिए अर्ध रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में में हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami), जिसे ‘कृष्णष्टमी (krishnashtami)’, ‘गोकुल अष्टमी (Gokul Ashtami)’ के नाम से भी जाना जाता है या कभी-कभी केवल ‘जन्माष्टमी (Janmashtami)‘ के रूप में। मथुरा (Mathura) के राजा कंस के कारागार में बंदी वसुदेव-देवकी (Vasudev-Devki) को भगवान ने पहले चतुर्भुज रूप में दर्शन देकर तुरंत बालरूप धारण कर लिया था। इसलिए यहाँ देवकी के गर्भ से भगवान कृष्ण (Shri Krishna) का जन्म हुआ था जो आज जन्मभूमि पर गर्भ गृह(Garbh Grah) के नाम से विख्यात है। इस दिन भक्तजन भगवान कृष्ण (Shri Krishna) की भक्ति भाव से पूजा करते है।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजन विधि (Shri Krishna Janmashtami Poojan Vidhi)
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami) पर भक्तजन अपनी श्रद्धानुसार उपवास कर सकते हैं। इस दिन के व्रत की विधि (Vrat Vidhi ) बहुत साधारण हैं। श्रद्धालु लोग अपनी इच्छानुसार व्रत कर सकते हैं। लोग इस दिन पुरे दिन का व्रत करते हैं और रात्रि में कृष्ण जन्म के पश्चात् भोजन करते हैं। कुछ लोग निराहार व्रत करते हैं, कुछ लोग फल खाकर व्रत रखते हैं, तो कुछ लोग फरियाल खाकर व्रत करते हैं।
- उपवास (Vrat) के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं।
- सुबह की पूजा कर व्रत का संकल्प (Sankalp) करना चाहिए।
- श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रात १२ बजे हुआ था। इसलिए प्रतिवर्ष मंदिरों एवं घरों में जन्माष्टमी (Janmashtami) का पूजन रात्रि १२ बजे करते हैं।
- भगवान श्री कृष्ण का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की नवीन प्रतिमा में करें।
- तत्पश्चात श्री कृष्ण का आवाहन करने के बाद, उन्हें आसन(Asan) देने के लिये कुछ पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
- आसन प्रदान करने के बाद, पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
- पाद्य(Padya) समर्पण के बाद, भगवान को अर्घ्य (सिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें।
- इसके पश्चात सम्पूर्ण स्नान कराकर, श्री कृष्ण को वस्त्र (Poshak) पहनाना चाहिए। फिर यज्ञोपवीत(Janeu) प्रदान कर भगवान को सुगन्धित द्रव्य (चन्दन, रोली, इत्र ) व चावल प्रदान करें ।
- श्रीकृष्ण के श्रंगार के लिए विभिन्न प्रकार के आभूषण (Ornaments) से अलंकृत करना चाहिए।
- तत्पश्चात फूल व माला अर्पित करें।
- फिर श्रीकृष्ण को नैवेद्य (माखन,मिश्री,पंजीरी, चरणामृत,फल) एवं ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें। चरणामृत दूध, दही, शहद, घी व शक़्कर का मिश्रण हैं। भोग में तुलसी (Tulsi) पत्ते अवश्य होने चाहिए।
- भगवान श्री कृष्ण की दीप, धूप और कर्पूर से आरती व स्तुति करनी चाहिए।
- फिर दक्षिणा प्रदान कर भगवान को नमस्कार करना चाहिए।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजन सामग्री (Shri Krishna Janmashtami Poojan Samagri)
Poojan Samagri | पूजन सामग्री | Qty.| मात्रा |
Lord Krishna photo / Idol | श्री कृष्ण मूर्ति / चित्र | 1 |
Janmashtami book | जन्माष्टमी किताब | 1 |
New cloth/Vastra/ Poshak for krishna | पोशाक /वस्त्र | 1 |
Flute | बांसुरी | 1 |
Ornaments for Lord Krishna | जेवरात /आभूषण | 1 |
Pooja | thali पूजा थाली | 1 |
Candle | दिया /दीपक | 5 nos |
Rose water | गुलाबजल | 100 ml |
Akshat/Rice | अक्षत / चावल | 100 gm |
Cardamom | इलाइची | Small pkt |
Lawang/Cloves | लौंग | 10 pcs |
Supari /betel nut | सुपारी | 5 pcs |
Paan patta /betel leaves | पान पत्ता | 5 pcs |
Mauli thread | मौली धागा | 1 roll |
Gangajal /Sacred water | गंगाजल | 200 ml |
Sindoor | सिन्दूर | 25 gm |
Incense Sticks | अगरबत्ती | 1 pkt |
Makhan/Clarified butter | माखन | half packet |
Misri |मिश्री | 100 gm |
Honey |शहद | 100 gm |
Ghee | घी | 100 gm. |
Janeu |जनेऊ | 1 roll |
PanchMeva |पंचमेवा | 100 gm |
Batti | बाती | 5 nos. |
Kumkum | कुमकुम | 25 gm |
Chandan Powder | चन्दन पाउडर | 25 gm |
Aasan|आसन | 1 no. |
AshtaGandha powder | अष्टगंध पाउडर | 25 gm |
Janmashtami Mithai | जन्माष्टमी मिठाई | 1 kg |
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कथा (Shri Krishna Janmashtami Katha)
द्वापर युग(Dwapar Yug) में जब पृथ्वी पर बहुत पाप बढ़ गया था तब उन पापों से दुखी होकर पृथ्वी (Earth) गाय का रूप रख कर ब्रह्मा जी(Brahma ji) के पास गई । ब्रह्मा जी ने सब देवताओं को बुलाया और पृथ्वी का दुःख सुनाया यह सुनकर सब देवता बोले – हे भगवन ! विष्णु जी के पास जाया जाए ।तब सब देवता पृथ्वी को लेकर क्षीरसागर(Kshir Sagar) गए और भगवन विष्णु (Bhagwan Vishnu) की स्तुति की। भक्तों की पुकार सुनकर भगवन प्रकट हुए और उनसे आने का कारन पूछा। तब पृथ्वी बोली – भगवन ! मेरे कर बहुत पापाचार हो रहे हैं । मुझसे यह भार सहन नहीं हो रहा हैं। इसका निवारण कीजिये । तब भगवन बोले – मैं ब्रजमंडल(Brij Mandal) में वसुदेव और देवकी के घर जन्म लूँगा। वे दोनों कंस के कारगर में बंद हैं । तुम सभी देव-देवांगनाएँ (गोप- गोपियों का) अपने-अपने शरीर धारण करो।
एक दिन विवाह के पश्चात् वसुदेव जी जब देवकी को लेकर गोकुल जा रहे थे और कंस उन्हें विदा करने जा रहा था । तभी आकाशवाणी हुई कि हैं कंस तुम अपनी जिस प्यारी बहन को विदा करने जा रहे हो उसी के गर्भ से उत्पन्न संतान तेरा काल होगी । यह सुनकर कंस न देवकी को मारने के लिए तलवार निकाली। तब वसुदेव ने कंस से कहा – स्त्री हत्या महापाप हैं । हम तुम्हे अपनी पैदा हुई प्रत्येक संतान लेकर दे देंगे । कंस उनकी बात मान गया । कंस ने उन्हें जेल में डाल दिया और बेड़ियाँ डाल दी । वसुदेव जी अपने सभी पुत्रों को जैसे-जैसे उत्पन्न होते थे कंस को देते गए । जब भादों वदी अष्टमी आई तब भगवन विष्णु ने वसुदेव को दर्शन दिए और कहा- तुम मुझे गोकुल नंद बाबा के घर पहुंचा दो और वहां जो यशोदा के घर कन्या हुई हैं उसे ले आओ।
यह सुनकर वसुदेव जी कृष्ण को लेकर गोकुल चलने को तैयार हुए कि उनकी हथकड़ी और बेड़ी सभी खुल गई , जेल के दरवाजे अपने आप खुल गए ।सरे पहरेदार गहरी नीद में सो गए वे कृष्ण को लेकर यमुना किनारे आये। जैसे ही जल में प्रवेश किया तो यमुना जी (Yamuna ji) बढ़ने लगी । यहाँ तक कि वसुदेव के गले तक पहुँच गई । तब भगवान ने शीघ्र अपना पैर टोकरी से बहार निकाला और यमुना जी(Yamuna ji) में लटका दिया। कृष्ण के चरण छूते ही यमुनाजी उतर गई।
यमुना जी को पर कर वसुदेवजी गोकुल पहुंचे। वसुदेव जी नन्द जी के घर के अंदर गए और कृष्ण को यशोदाजी (Yashoda ji)के पास सुलाकर कन्या को ले आये। जब वे जेल में आ गए तब जेल का फाटक स्वयं बंद हो गया।
वसुदेव जी के हाथ-पाई में फिर से हथकड़ी-बेड़ी पड़ गयी, पहरेदार जग गए और कन्या जोर-जोर से रोने लगी। कन्या का रोना सुनकर पहरेदार कंस को ले आये। कंस जैसे ही कन्या उठाके पटकने लगा कि वह कन्या उसके हाथ से छूट कर उड़ गई और अष्टभुजी हो हाथों में आयुध लिए हुए देवी का रूप रखकर बोली – अरे कंस ! तू मुझे क्या मारेगा ? तुझे मारने वाला तो ब्रज में कहीं पैदा हो चुका है।
इन्हीं भगवन कृष्ण ने बाल रूप में पापी कंस अदि अन्य राक्षसों को मारकर पृथ्वी का भार दूर किया । जो यह कथा कहते-सुनते हैं वे आनंद प्राप्तकर स्वर्ग का सुख भोगते हैं।