गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)
गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहारों में से एक है। इस दिन को भगवान गणेश (Ganesh) के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। भगवान गणेश ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि और अच्छे भाग्य का प्रतीक है।
गणेश चतुर्थी को हिंदू माह के भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर मनाया जाता है। इस वर्ष गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) 25 अगस्त 2017 (शुक्रवार) को मनाया जाएगा। गणेश पूजा का शुभ समय मध्याह्न 11:13 से 1:44 तक है।
लोग भगवान गणेश (Ganesh) की मूर्तियों को अपने घर ले जाते हैं और पूजा करते हैं। इस त्यौहार की अवधि 1 दिन से 11 दिनों के बीच होती है। त्यौहार के आखिरी दिन (अनंत चतुर्दशी के दिन) मूर्तियों को पारंपरिक रूप से सरोवर, झील, नदी इत्यादि के जल में विसर्जन होता है।
गणेश चतुर्थी पर चन्द्र-दर्शन का निषेध (Prohibition of moon-sight on Ganesh Chaturthi)
गणेश चतुर्थी पर चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए क्योंकि चन्द्रमा को गणेश जी का शाप लगा हुआ है जो चंद्र-दर्शन कर लेता है उसे झूठा कलंक लग जाता है। अगर चन्द्रमा दिख जाये तो स्यमन्तक मणि (Syamantak Mani) की कथा /सत्राजित (Satrajit) की कथा सुने अथवा निम्न मंत्र को पढ़ कर दोष की शांति करे –
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
गणेश चतुर्थी पूजन विधि (Ganesh Chaturthi Poojan Vidhi)
- उपवास (Vrat) के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं।
- सुबह की पूजा कर व्रत का संकल्प (Sankalp) करना चाहिए।
- मध्याह्न काल को गणेश पूजा के लिये ज्यादा उपयुक्त माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न के समय के दौरान हुआ था
- भगवान गणेश का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित गणेश की नवीन प्रतिमा में करें।
- तत्पश्चात गणेश का आवाहन करने के बाद, उन्हें आसन(Asan) देने के लिये कुछ पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
- आसन प्रदान करने के बाद, पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
- पाद्य(Padya) समर्पण के बाद, भगवान को अर्घ्य (सिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें।
- इसके पश्चात सम्पूर्ण स्नान कराकर, भगवान गणेश को वस्त्र (Poshak) पहनाना चाहिए। फिर यज्ञोपवीत(Janeu) प्रदान करें ।
- भगवान गणेश के श्रंगार के लिए विभिन्न प्रकार के आभूषण (Ornaments) से अलंकृत करना चाहिए।
- सुगन्धित द्रव्य (गंध या इत्र) व अक्षत (Rice) का अर्पण करें।
- तत्पश्चात भगवान को पुष्प माला, शमी पत्र, दुर्वाङ्कुर(तीन अथवा पाँच पत्र वाला दूर्वा), सिन्दूर,चन्दन व रोली चढ़ायें।
- फिर भगवान गणेश को नैवेद्य (मोदक,लडडू व फल) समर्पित करें।
- तत्पश्चात भगवान गणेश को चन्दन करोद्वर्तन (चन्दन युक्त जल) समर्पित करें।
- ताम्बूल(पान, सुपारी व इलाइची के साथ) व नारिकेल चढ़ायें।
- दीप, धूप और कर्पूर से भगवान गणेश की आरती व स्तुति करनी चाहिए।
- फिर दक्षिणा प्रदान कर भगवान को नमस्कार करना चाहिए
गणेश चतुर्थी का महत्त्व (Importance of Ganesh Chaturthi)
- गणेश जी जीवन के संकटों को दूर करते है।
- किसी भी शुभ कार्य करने से पूर्व गणेश पूजा की जाती है ताकि सारे कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो सके। गणेश जी का एक नाम विघ्नहर्ता भी है।
- घर में सुख-शांति के लिए गणेश चतुर्थी की पूजा की जाती है।
- संतान प्राप्ति के लिए स्त्रियां इस दिन व्रत करती है।
- भगवान गणेश ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि और अच्छे भाग्य का प्रतीक है।
गणेश चतुर्थी कथा (Ganesh Chaturthi Katha)
एक बार माता पार्वती (Parvati) ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। तत्पश्चात भगवान शंकर(Shankar) ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती पार्वती क्रोधित हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली।
भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद (Devaeshi Narad) की सलाह पर जगदम्बा (Jagdamba) की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। भगवान शंकर ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया।
ब्रह्मा (Bramhma), विष्णु (Vishnu), महेश (Mahesh) ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर! इस चतुर्थी तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।