गोवर्धन पूजा (Govardhan Pooja)
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन नाम का त्यौहार मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा (Govardhan Pooja) में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी (Laxmi) का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है।
वर्ष 2017 में 20 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
गोवर्धन पूजा दिवाली महोत्सव (Diwali Mahotsava) का एक पर्व है एवं दिवाली महोत्सव मे क्रमशः धनतेरस (Dhanteras), नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi ), दीवाली (Diwali), गोवर्धन पूजा (Gowardhan Pooja) और भाई दूज (Bhai Dooj) सम्मिलित है। यह भारत के विभिन्न राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मथुरा, वृंदावन और बिहार के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है।
गोवर्धन पूजा (Govardhan Pooja) को अन्नकूट पूजा (Annakut Pooja) भी कहते है। इस दिन गेहूँ, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है। इस दिन को भगवान कृष्ण द्वारा इन्द्र देव को पराजित किये जाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा कर लोगों को प्रकृति की पूजा करना सिखाया।
महाराष्ट्र में यह दिन बालि प्रतिपदा (Bali Pratipada) या बालि पड़वा (Bali Padwa) के रूप में मनाया जाता है। भगवान वामन (भगवान विष्णु के एक अवतार) की राजा बालि पर विजय और बाद में बालि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है। यह माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुरराज बालि इस दिन पातल लोक से पृथ्वी लोक आता है।
गोवर्धन पूजा विधि (Govardhan Pooja Vidhi)
इस दिन महिलायें गोबर से भगवान गोवर्धन की प्रतिमा बनाकर उसकी भली प्रकार से पूजा करती है और संध्या समय अन्नादि का भोग लगाकर दीपदान करती हुई परिक्रमा करती हुई परिक्रमा करती है। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
गोवर्धन पूजा कथा (Govardhan Pooja Story)
गोवर्धन मथुरा के पास ‘ब्रज’ में स्थित एक छोटी पहाड़ी है। प्राचीन काल में दीवाली के दूसरे दिन भारत में और विशेषकर ब्रजमंडल में इंद्र पूजा हुआ करती थी। श्रीकृष्ण ने नन्द बाबा, यशोदा मैया और अन्य ब्रजवासियों को इंद्र देव की पूजा करते हुए देखा। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मैया यशोदा से प्रश्न किया ‘मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं।’ मैया बोली ‘लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं। इन्द्रदेव वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है’।
श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि वर्षा का जल हमें गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होता है न की इंद्र की कृपा से। हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है । सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी।
प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी डर गये। तब श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता। इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी।
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