Karwa Chauth | करवा चौथ
करवा चौथ (Karwa Chauth) दिन को करक चतुर्थी (Karak Chaturthi) भी कहा जाता है। सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना से करवा चौथ (Karwa Chauth) व्रत रखती हैं। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है।सामान्यत: विवाहोपरांत 12 या 16 साल तक लगातार इस उपवास को किया जाता है लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं। माना जाता है कि अपने पति की लंबी उम्र के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपवास व्रतादि नहीं है।
करवा चौथ दिनांक व दिन = 8 अक्टूबर 2017, रविवार
करवा चौथ पूजा मुहूर्त = 6:03 pm से 7:17 pm
करवा चौथ पर चंद्र दर्शन = 8:27 pm
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को उपवास उसका सुहागिन स्त्रियों के लिये बहुत अधिक महत्व रखता है। मिट्टी के बर्तन को करवा या करक(Karwa or Karak) कहते है। जिसके माध्यम से चंद्रमा को अर्घ (पानी अर्पण करना) दिया जाता है। करवा पूजा के दौरान बहुत महत्वपूर्ण है और यह भी ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान के रूप में दिया जाता है। हालांकि पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूम-धाम से इस त्यौहार को मनाते हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस दिन अलग ही नजारा होता है।
करवाचौथ पर सुहागिनों के 16 श्रृंगार (16 Shringar/ makeup/adornments of Suhagin on Karwa Chauth)
शब्द “श्रृंगार (Shringar)” ‘श्री‘ से बना है जिसका अर्थ है “लक्ष्मी”, धन, सौंदर्य, भाग्य और समृद्धि की देवी। एक महिला के लिए श्रृंगार बहुत मत्वपूर्ण है। करवा चौथ में सुहागिनों को 16 श्रृंगार करके पूजा करती है। आइये जानते है कि 16 श्रृंगार में क्या क्या होता हैं।
मांगटीका, बिंदिया, काजल, नथनी, केशपार्शचना (चूड़ामणि व गजरा), सिंदूर, मंगलसूत्र/हार, कर्णफूल/झुमके, कंगन/चूड़ी, कमरबंध, बाजूबंद, अंगूठी, पायल, बिझिया, माहवार/ आलता, मेहंदी।
करवा चौथ व्रत की विधि (Karwa Chauth Vrat Vidhi)
- उपवास के दिन, सुबह स्नान करने के बाद, पति और परिवार के भलाई के लिए निर्जल (बिना भोजन या पानी) उपवास रखने के लिए संकल्प “मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।” ऐसा बोलकर करना चाहिए। चन्द्रमा को देखने के बाद उपवास संपन्न हो जाता है।
- संध्या काल करवा चौथ पूजा करने का सबसे अच्छा समय होता है।
- भगवान शिव, माँ पार्वती (गौरी), स्वामी कार्तिकेय, श्री गणेश एवं चंद्र देव की स्थापना कर उनकी पूजा करनी चाहिए। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर कलावा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें।
- चौक बनाकर लकड़ी के आसन पर मूर्ति या तस्वीर (फोटो) उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
- करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें।
- एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें।
- करवा चौथ महात्म्य की कहानी सुननी या पढ़नी चाहिए।
- सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर छलनी की ओट से उसे देखें और चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें।
- इसके पश्चात उपरोक्त रूप से अर्पित एक लोटा, वस्त्र, सुहाग की सामग्री व विशेष करवा (चावल, उड़द की दाल के साथ), रखकर सास या सास की उम्र के समान किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए। इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।
करवा चौथ कथा (Karwa Chauth Story)
प्राचीन काल में द्विज नामक ब्राह्मण के सात पुत्र और एक वीरावती (Viravati) नाम की कन्या थी। वीरावती सात भाईयों एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती भूख के कारण मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।
भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्र दर्शन (Chandra Darshan) किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। एक भाई कुछ दूर वट वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है। अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा।
वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति को पाया। यह देखकर वीरावती रोने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी (इन्द्र देवता की पत्नी) वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची। वीरावती ने देवी इन्द्राणी (Indrani) से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी।
वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने कहा कि उसने चन्द्र को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ (Karwa Chauth) के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा। इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ किया। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः जीवित हो उठा।