स्यमंतक मणि (Syamantak Mani)

गणेश चतुर्थी पर चंद्र-दर्शन निषेध है (Chandra-Darshan is a taboo on Ganesh Chaturthi) क्योंकि इस रात्रि को चंद्रमा को देखने से झूठे आरोप लगते हैं। भगवान श्री कृष्ण को भी चंद्र दर्शन करने पर स्यमन्तक मणि की चोरी मिथ्या कलंक लगा था। गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के चंद्र- दर्शन के कलंक को दूर करने के लिए श्रीमद भागवत (Shri md Bhagwat) की (स्यमन्तक मणि (Syamantak Mani) की कथा /सत्राजित (Satrajit) की कथा) सुननी चाहिए।

स्यमंतक मणि कथा (Syamantak Mani Story)

द्वारिका पुरी (Dwarika Puri) में निवास करने वाले सत्राजित (Satrajit) नाम के एक यदुवंशी (Yaduvanshi) ने सूर्य भगवान (Bhagwan Surya) को तप से प्रसन्न कर स्यमंतक नाम की मणि प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन नित्य आठ भार सोना स्वर्ण प्रदान करती थी। उसके प्रभाव से पूरे राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि यानी बरसात न होना, सर्प, अग्नि, चोर आदि का डर नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित स्यमंतक मणि (Syamantak Mani) को गले में पहनकर सभा में श्री कृष्ण से मिलने गए। 

स्यमंतक मणि (Syamantak Mani)

श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने सोचा कि कितना अच्छा होता यह मणि अगर राजा उग्रसेन (King Ugrasen) के पास होती। श्रीकृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजित (Prasenjit) को दे दी। एक दिन प्रसेनजित घोड़े पर चढ़कर शिकार के लिए गया। वहाँ एक शेर ने उसे मार डाला और मणि ले ली। रीछों का राजा जामवन्त उस सिंह को मारकर मणि लेकर गुफा में चला गया। जब वह वापस नहीं लौटा तो लोगों ने यह आशंका उठाई कि श्रीकृष्ण उस मणि को चाहते थे। 

स्यमंतक मणि (Syamantak Mani)

इसलिए सत्राजित् को मारकर उन्होंने ही वह मणि ले ली होगी। लेकिन मणि सिंह के मुंह में रह गई। जाम्बवान (Jambvan)/जामवन्त (Jamvant) ने शेर को मारकर मणि ले ली। जब श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि उन पर झूठा आरोप लग रहा है तो वे सच्चाई की तलाश में जंगल गए। वहाँ पर प्रसेनजित को शेर द्वारा मार डालना और शेर को रीछ द्वारा मारने के चिह्न उन्हें मिल गए। रीछ के पैरों की खोज करते-करते श्रीकृष्ण जामवन्त की गुफा पर पहुँचे और गुफा के भीतर चले गए। वहाँ उन्होंने देखा कि जामवन्त (Jamvant) की पुत्री जाम्बन्ती (Jamvanti) उस मणि से खेल रही है।

स्यमंतक मणि (Syamantak Mani)

श्रीकृष्ण को देखते ही जामवन्त (Jamvant) युद्ध के लिए तैयार हो गए। युद्ध छिड़ गया।  गुफा के बाहर श्रीकृष्ण के साथियों ने उनकी सात दिन तक प्रतीक्षा की। फिर वे लोग उन्हें मर गया जानकर पश्चाताप करते हुए द्वारिकापुरी लौट गए। इधर इक्कीस दिन तक लगातार युद्ध करने पर भी जामवन्त श्रीकृष्ण को पराजित न कर सका। तब उसने सोचा, कहीं यह वह अवतार तो नहीं जिसके लिए मुझे रामचंद्रजी (Ram Chandra ji) का वरदान मिला था। यह पुष्टि होने पर उसने अपनी कन्या का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और मणि दहेज में दे दी।

स्यमंतक मणि (Syamantak Mani)

श्रीकृष्ण जब मणि लेकर वापस आए तो सत्राजित अपने किए पर बहुत लज्जित हुआ। इस लज्जा से मुक्त होने के लिए उसने भी अपनी पुत्री सत्यभामा (Satyabhama) का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।

One thought on “स्यमंतक मणि (Syamantak Mani)

  1. Tannu Rani

    Nice story

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