यम द्वितीया (Yam Dwitiya) | भाई दूज (Bhai dooj)

यम द्वितीया (Yam Dwitiya) को भातृद्वितीया (Bhatra Dwitiya) और भाई दूज (Bhai dooj) भी कहा जाता हैं। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाए जाने वाला हिन्दू पर्व है। यम द्वितीया (Yam Dwitiya) दिवाली महोत्सव (Diwali Mahotsava) का आखिरी पर्व है एवं दिवाली महोत्सव मे क्रमशः  धनतेरस (Dhanteras)नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi )दीवाली (Diwali)गोवर्धन  पूजा (Gowardhan Pooja) और भाई दूज (Bhai Dooj) सम्मिलित है। 

वर्ष 2017 में, भाईदूज (Bhai dooj) 21 अक्टूबर (शनिवार) को मनाया जाएगा।

भाईदूज का पर्व भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं व उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं।

विधि (Vidhi)

भाई दूज पर बहनें भाई के सिर पर रोली एवं अक्षत से तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करके उनके लम्बे और सुखी जीवन की प्रार्थना करती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार प्रदान करते हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं।

चित्रगुप्त जयंती (Chitragupt Jayanti)

कायस्थ समाज (Kayasth Samaj) में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं।

यम द्वितीया कथा (Yam Dwitiya story)

सूर्य भगवान (Lord Sun) की स्त्री का नाम संज्ञा देवी (Sangya Devi) था। इनकी दो संतानें, पुत्र यमराज (Yamraj) तथा कन्या यमुना (Yamuna) थी। संज्ञा देवी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया (Chhaya) बन कर रहने लगीं। उसी छाया से ताप्ती नदी (Tapti River) तथा शनिदेव (Shanidev) का जन्म हुआ। इधर छाया का यम तथा यमुना से विमाता सा व्यवहार होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का कार्य सम्पादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गोलोक (Golok) चली आईं जो कि कृष्णावतार के समय भी थी।

यम द्वितीया (Yam Dwitiya) | भाई दूज (Bhai dooj)

यमुना अपने भाई यमराज से बडा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि वह उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। बहुत समय व्यतीत हो जाने पर एक दिन सहसा यम को अपनी बहन की याद आई। उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना की खोज करवाई, मगर वह मिल न सकीं। फिर यमराज स्वयं ही गोलोक गए जहाँ विश्राम घाट पर यमुनाजी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुनाजी ने हर्ष विभोर होकर उनका स्वागत सत्कार किया तथा उन्हें भोजन करवाया। इससे प्रसन्न हो यम ने वर माँगने को कहा।

यमुना ने कहा – हे भइया! मैं आपसे यह वरदान माँगना चाहती हूँ कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएँ। प्रश्न बड़ा कठिन था, यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। भाई को असमंजस में देख कर यमुना बोलीं – आप चिंता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहाँ भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वे तुम्हारे लोक को न जाएँ। इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने बहन यमुनाजी को आश्वासन दिया – ‘इस तिथि को जो सज्जन अपनी बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बाँधकर यमपुरी ले जाऊँगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग होगा।’ तभी से यह त्यौहार मनाया जाता है।

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