धनतेरस | Dhanteras: A Festival related to Health and Wealth

धनतेरस (Dhanteras)

दीवाली (Diwali) के त्यौहार की शुरुआत धनतेरस (Dhanteras) या धनत्रयोदशी (Dhan Trayodashi) से होती है। धनतेरस (Dhanteras) के बाद क्रमशः नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi ), दीवाली (Diwali)गोवर्धन  पूजा (Gowardhan Pooja) और भाई दूज (Bhai Dooj) मनायी जाती है। हिन्दू समाज में धनतेरस सुख-समृद्धि, यश और वैभव का पर्व माना जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर (Kuber: God of Wealth) और आयुर्वेद के देव धन्वंतरि (Dhanvantari: God of Health) की पूजा का बड़ा महत्त्व है। भगवान कुबेर को ‘धन-सम्पत्ति का कोषाध्यक्ष’ माना जाता है। भगवान धन्वन्तरि ‘आयुर्वेद के जनक’ और ‘देवताओं के वैद्य’ है।

इस वर्ष 17 अक्टूबर 2017 (मंगलवार) | पूजा मुहूर्त = 7:34 pm से 8:22 pm ।

स्कन्द पुराण में लिखा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (Kartik Krishna Trayodashi) के दिन समुद्र मंथन (Samudra Manthan) से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश (Amrit Kalash) और आयुर्वेद (Ayurveda) लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण से भगवान धनवन्‍तरी को ‘औषधी का जनक’ भी कहा जाता है। उन्होंने देवताओं को अमृतपान कराकर अमर कर दिया था। इस दिन लोग भगवान धन्वन्तरि की पूजा करते हैं और उनसे अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। धनतेरस का दिन धन्वन्तरि त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के 24 अवतारों में से एक माने जाते हैं।   

धनतेरस के दिन सोने-चांदी के बर्तन या कोई धातु खरीदना शुभ माना जाता है।

यम दीपम (Yam Deepam)

धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीपक (Deepak)/दिया (Diya) जलाने की प्रथा भी है जिसे यम दीपम (Yam Deepam) के नाम से जाना जाता है। इस दिन को यमदीप दान (Yam Deep Dan) भी कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज (Yamraj) के कोप से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है।

लोक कथा (Mythological Story)

किसी समय में एक हेम नाम के राजा थे। उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे।जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए।

दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।

धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras Pooja Vidhi)

धन तेरस की शाम को प्रदोषकाल में घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है।

  •  श्री गणेश,मां लक्ष्मी, कुबेर, मिट्टी के हाथी और धन्वंतरि जी सबका एक साथ पंचोपचार पूजन (Panchpchar Poojan) करें।  (पंचोपचार पूजन: 1.भगवान की मूर्ति या फोटो का स्नान और श्रंगार। 2.पत्र-पुष्प चढ़ाये जाते है। 3.धूप व अगरबत्ती से वातावरण सुगन्धित बनाया जाता है । 4. दीपक प्रज्वलित कर आरती की जाती है। 5. नैवेद्य (भोग) अर्पित किया जाता है।)
  • धन्वन्तरी मंत्र “ॐ धन धनवंतारये नमः” का जाप करें।
  • एक लकड़ी के चौकी (Bench) पर रोली से स्वस्तिक बनाकर एक मिट्टी के दिए को उस पर रख कर जलाएं।
  • दिए के आस पास तीन बारी गंगा जल (Ganga Jal) का छिडकाव करें।
  • दिए पर रोली का तिलक व चावल रखें। दिए पर थोड़े फूल व थोड़ी चीनी चढायें। इसके बाद 1 रुपये का सिक्का दिए में डालें।
  • अब दिए को अपने घर के गेट के पास रखें। उसे दाहिने तरह रखें और यह सुनिश्चित करें की दिए की लौं दक्षिण दिशा की तरफ हो।
  • यमराजजी का ध्यान करें। यह मंत्र बोलें-
    मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह |
    त्रयोदश्यां दीपदानात सूर्यजः प्रीयता मिति || 
    (त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों। इस मंत्र के द्वारा लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं।)
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