नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) | छोटी दीवाली (Chhoti Diwali)

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi), रूप चतुर्दशी (Roop Chaturdashi), काली चौदस (Kali Chaudas) और छोटी दीपावली (Chhoti Dipawali) के नाम से जाना जाता है। नरक चतुर्दशी के एक दिन पहले धनतेरस (Dhanteras) और इसके बाद क्रमशः दीवाली (Diwali), गोवर्धन  पूजा (Gowardhan Pooja) और भाई दूज (Bhai Dooj) मनायी जाती है।

18 अक्टूबर 2017 (बुधवार) | अभ्यंग स्नान मुहूर्त = 05:22 am -06:46 am।

छोटी दीवाली पूजन विधि (Chhoti Diwali Poojan Vidhi)

  • लोग सुबह सुबह उठकर और ‘उबटन (Ubtan)’ के साथ एक अभ्यंग स्नान (Abhyanga Snan) करते हैं। यह उबटन चंदन, आंबी हल्दी, मुल्तानी मिट्टी, खुस, गुलाब, बेसान इत्यादि का मिश्रण होता है।
  • फिर भगवान सूर्य (Lord Sun) को अर्घ्य दिया जाता है।
  • इस दिन भगवान कृष्ण (Lord Krishna), माँ काली (Maa Kali) और हनुमान जी (Hanuman ji) की आराधना की जाती है।
  • रात्रि के समय घर की दहलीज पर दीपक जलाये जाते है और यमराज जी की भी पूजा करते है।

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथाएं (Mythological Stories of Narak Chaturdashi)

एक कथा के अनुसार इस दिन ही भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishna) ने देवी सत्यभामा के साथ अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मानजनक जीवन प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है।

इस दिन के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नरक जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। यह सुनकर यमदूत ने कहा कि- हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है।

इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंच कर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।

रूप चतुर्दशी कथा की पौराणिक कथा (Mythological Story of Roop Chaturdashi )

एक समय भारत वर्ष में हिरण्यगर्भ नामक नगर में एक योगिराज रहते थे। उन्होंने राजपाठ छोड़ कर कई वर्षों तक तपस्या की। उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। इस बात से योगिराज बहुत दुखी हो गए। उन्होंने नारद जी को अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने नारद जी ने उन्हें बताया की साधना कल के दौरान अपने शरीर का ध्यान नहीं रखा। तब योगिराज ने इस समस्या का समाधान पूछा। नारद जी बोले- कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शरीर पर लेप लगा कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करके और व्रत रखकर पूजा करने से तुम्हारा शरीर पहले जैसा रूपवान हो जाएगा। योगिराज ने ऐसा ही किया तब उनका शरीर पहले जैसा रूपवान हो गया। इसलिए इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते है।

Diwali Poojan Kit…….

 

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